“चुनावी बॉन्ड (Electoral Bond) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सारांश। स्टेट बैंक के साथ चुनाव आयोग के बीच उत्पन्न विवाद पर चर्चा।”
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में चुनावी बॉन्डों के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इन बॉन्डों के संबंध में कई गड़बड़ियाँ सामने आई थीं, जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट ने सख्त कदम उठाते हुए इन्हें बंद करने का आदेश दिया है।
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सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक से भी हिसाब माँगा है। बैंक को चुनाव आयोग को सभी डेटा प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया है, जिसे बैंक ने अभी तक पूरा नहीं किया है।
स्टेट बैंक को अपना हिसाब या डेटा चुनाव आयोग को देना था, जो इसे सार्वजनिक करने के लिए वेबसाइट पर डालने वाला था। लेकिन, जब ऐडीआर ने अवमानना की याचिका लगाई, तो बैंक के कान खड़े हुए। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई की, और बैंक ने 30 जून तक का वक्त माँगा, लेकिन इसकी वजह कोई नहीं जानता, और बैंक भी सही ढंग से जवाब नहीं दे पाया।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद, बैंक ने इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) की डेटा प्रस्तुत करने में कोई कदम नहीं उठाया है। यह इस बात की पुष्टि करता है कि बैंक अपनी जिम्मेदारियों से बचने का प्रयास कर रहा है।
आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट ने बैंक को केवल एक दिन का समय दिया है और कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) की सभी डेटा को 12 मार्च तक चुनाव आयोग को प्रस्तुत किया जाए। इसके साथ ही, चुनाव आयोग को 15 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर सभी डेटा डालने का निर्देश भी दिया गया है।
यह साफ है कि बैंक के द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) की डेटा प्रस्तुत करने में देरी के पीछे किसी न किसी राजनीतिक दबाव का होना संभव है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बैंक को सीधे संदेश दिया है कि वह अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करे।
इस फैसले से चुनावी बॉन्डों के मामले में पारदर्शिता के संदेश को मजबूती से मिलेगी, जिससे राजनीतिक दलों के चंदे की हेराफेरी को रोकने में मदद मिलेगी।